Sunday, June 2, 2013

न्यायिक सक्रियता के निहिता


ऐसा महसूस हो रहा है कि देश को इस समय कोई जनता के द्वारा चुनी गई सरकार नहीं बल्कि न्यायपालिका चला रही है। सरकार नाम की कोई ताकत सत्ता में है और देश का कामकाज भी निपटा रही है ऐसा लगना काफी पहले से बंद हो चुका है। ऐसा महसूस होने देने के पीछे भी सरकार का ही हाथ है। जनता देख रही है कि देश की सेहत से जुड़े अहम मामलों पर फैसले करने अथवा सलाह देने का काम न्यायपालिका के हवाले हो गया है और सरकार अदालती कठघरों में खड़ी सफाई देती हुई ही नजर आती है। संसद ठप-सी पड़ी है और सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता बढ़ गई है। बहस का विषय हो सकता है कि क्या यह स्थिति किसी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए उचित और फायदेमंद है। ऐसा कौन सा मुद्दा है जो आज सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर फैसले के लिए गुहार नहीं लगा रहा है? और सवाल यह भी है कि इन मुद्दों में कौन-सा ऐसा है जिस पर सरकार स्वयं कोई न्यायोचित फैसला नहीं ले सकती है? एक वक्त था जब बहस इस बात पर चलती थी संसद की सत्ता सर्वोच्च है या न्यायपालिका की?

केशवानंद भारती केस में न्यायपालिका की व्यवस्था के बाद सालों साल इस पर बहस भी चली। संसद और न्यायपालिका के बीच अधिकार-क्षेत्र को लेकर कई बार टकराव की स्थितियां भी बनीं। पर आज के हालात देखकर लगता है कि न तो सरकार ही और न ही जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही इतनी दयनीय स्थिति में पहले कभी देखे गए। ऐसे हालात तभी बनते हैं जब सरकार का अपनी ही संस्थाओं पर नियंत्रण खत्म होता जाता है या फिर उसका अपनी जनता पर से भरोसा उठ जाता है। सत्ता में काबिज लोगों को ऐसा आत्मविश्वास होने लगता है कि सबकुछ ठीकठाक चल रहा है और स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है। न तो कोई अव्यवस्था है और न ही कोई भ्रष्टाचार, विपक्षी दलों द्वारा जनता को जान-बूझकर गुमराह किया जा रहा है। दूरसंचार घोटाले पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट को लेकर कपिल सिब्बल जैसे जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री द्वारा किया गया दावा और उस पर न्यायपालिका सहित देशभर में हुई प्रतिक्रिया इसका केवल एक उदाहरण है। विभिन्न मुद्दों पर सरकार द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ठीक उसी प्रकार से है जैसे भयाक्रांत सेनाएं मैदान छोड़ने से पहले सारे महत्वपूर्ण ठिकानों को ध्वस्त करने लगती हैं।

आश्चर्यजनक नहीं कि एक अंग्रेजी समाचार पत्र द्वारा वर्ष 2011 के लिए देश के सर्वशक्तिमान सौ लोगों की जो सूची प्रकाशित की गई है उसमें पहले स्थान पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसएच कापड़िया को रखा गया है। दूसरा स्थान कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को और तीसरा एक सौ बीस करोड़ की आबादी वाले देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रदान किया गया है। इस क्रम पर अचंभा भी व्यक्त किया जा सकता है और जिज्ञासा भी प्रकट की जा सकती है। बताया गया है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में श्री कापड़िया आज सुप्रीम कोर्ट की ताकत का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक ऐसे वक्त जब राजनीति का निर्धारण न्यायपालिका के फैसलों/टिप्पणियों से हो रहा है, नंबर वन न्यायाधीश और उनकी कोर्ट देश का सबसे महत्वपूर्ण पंच बन गई है। अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित फैसले को लेकर जब राजनीति की सांसें ऊपर-नीचे हो रही थीं, बहसें सुनने के बाद उन्होंने यह निर्णय देने में एक मिनट से कम का समय लगाया कि हिंसा फैलने की आशंकाओं को बहाना नहीं बनने दिया जाना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय को अपना फैसला सुनाना चाहिए।

चिंता का मुद्दा यहीं तक सीमित नहीं है कि राष्ट्रमंडल खेलों में सरकार की नाक के ठीक नीचे हुए भ्रष्टाचार से लेकर विदेशों में जमा काले धन की वापसी के सवाल तक पिछले महीनों के दौरान जितने भी विषय उजागर हुए उन सबमें सच्चाई सामने आने की संभावनाएं न्यायपालिका के हस्तक्षेप के बाद ही प्रकट हुईं और ऐसा कोई आश्वासन नहीं है कि जो सिलसिला चल रहा है वह कहीं पहुंचकर रुक जाएगा।

क्या ऐसी आशंका को पूर्णत: निरस्त किया जा सकता है कि लगातार दबाव में घिरती हुई कार्यपालिका किसी मुकाम पर पहुंचकर न्यायपालिका के फैसलों को चुनौती देने, उन्हें बदल देने या उन पर अमल को टालने की गलियां तलाश करने लगे। या फिर न्यायपालिका पर राजनीतिक आरोप लगाए जाने लगें कि वह शासन के कामकाज में हस्तक्षेप करते हुए अग्रसक्रिय (प्रोएक्टिव) होने का प्रयास कर रही है, टकराव की स्थिति इससे भी आगे जा सकती है। ऐसा अतीत में हो चुका है।

अक्टूबर 2009 में जब इटली की 15 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने व्यवस्था दी कि वहां की संसद द्वारा पूर्व में पारित कानून, जिससे प्रधानमंत्री को उनके खिलाफ चलाए जाने वाले मुकदमों के प्रति सुरक्षा (इम्यूनिटी) प्राप्त होती है असंवैधानिक है तो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सिल्वियो बलरूस्कोनी ने निर्णय को यह कहते हुए चुनौती दे दी कि संवैधानिक पीठ पर वामपंथी जजों का आधिपत्य है। उन्होंने कहा कि ‘कुछ नहीं होगा, हम ऐसे ही चलेंगे।’ उन्होंने कोर्ट को ऐसी राजनीतिक संस्था निरूपित किया, जिसकी पीठ पर 11 वामपंथी जज बने हुए हैं।

न्यायपालिका की संवैधानिक व्यवस्थाओं को तानाशाही तरीकों से चुनौती देने की स्थितियां और कार्यपालिका के कमजोर दिखाई देते हुए हरेक फैसले के लिए न्यायपालिका के सामने लगातार पेश होते रहने की अवस्था के बीच ज्यादा फर्क नहीं है। एक स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं। चूंकि इस समय देश का पूरा ध्यान सरकार व न्यायपालिका के बीच चल रहे संवाद व अदालती व्यवस्थाओं पर केंद्रित है, विपक्ष की इस भूमिका को लेकर कोई सवाल नहीं खड़े कर रहा है कि कार्यपालिका को कमजोर करने में भागीदारी का ठीकरा उसके सिर पर भी फूटना चाहिए। जो असंगठित और कमजोर विपक्ष न्यायपालिका की ताकत को ही अपनी ताकत समझकर आज सरकार के सामने इतना इतरा रहा है वह स्वयं भी कभी आगे चलकर इसी तरह के टकरावों की स्थितियों का शिकार हो सकता है। यह मान लेना काफी दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि देश का राजनीतिक विपक्ष न्यायपालिका के फैसलों और टिप्पणियों में ही अपने लिए शिलाजीत की तलाश कर रहा है।

Monday, September 28, 2009

दशहरा

सब से पहले तो मेरे सारे दोस्तों को दशहरे की हार्दिक शुभ कामनाये । ये त्यौहार यों तो मनाया जाता है बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए । पर कई बार सोंचता हूँ की इतने सालो से हम ये त्यौहार मानते आ रहे है पर आज तक हम पूरी तरह से बुराई पर विजय नही पा सके हैं । फिर ख़याल आता है की इस बुराई की वजह से ही तो अच्छाई की अशली कीमत हमें पता चल पाती है , वर्ना यदि हमें सिर्फ़ अच्छाई ही मिले तो हम उसका मोल ही नही जान पाएंगे । क्यों मई सही कह रहा हों न । बस हमें जरुरत है उस बुराई को अपने ऊपर हावी न होने देने के लिए जागरूक रहने की । इसी कामना के साथ की आपका आने वाला कल आज से बेहतर होगा, मैं यहीं पर विराम चाहता हूँ । एक बार पुनः आप को एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक शुभ कामनाएं ।

Saturday, September 26, 2009

आज छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में नक्सालियों ने एक हिर्दये विदारक घटना को अंजाम दिया | उन्होंने सांसद श्री बलिराम कश्यप के बेटों को गोलियां मर दी ,और जब उन्होंने गोलियां मारी तो वे दोनों दुर्गाष्टमी के उपलक्ष्य में हवन कर रहे थे जिनमें से एक लड़के की तो घटना के कुछ समय बाद ही मौत हो गई |

नक्सलियों का जन्म जहाँ तक मेरी जानकारी है बंगाल के नक्सल बाडी इलाके से हुई थी |जिसके नाम पर ही इसका नाम नक्सल वाद पड़ा | उस समय इनका जन्म गरीबो पे किए जा रहे अत्याचार और सरकारी योजनाओं का उन तक न पहुँच पाने की वजह से उमडे असंतोष की वजह से हुआ था |पर आज क्या ये अपने उसी उद्देश्य के साथ आगे बढ़ रहे है ? क्या इनका उद्देश्य उन्ही गरीबो के लिए लड़ना है जिनके लिए इन्होने हथियार उठाय थे ? मुझे तो ऐसा नही लगता |

आज ये उन्ही गरीबो को पिछडी हुई जिंदगी देने के लिए जिम्मेदार है | इनकी वजह से ही नक्सल प्रभावित इलाको में विकास के कोई कार्य नही हो पा रहे है | आज ये किसी भी प्रकार की शिक्षा का विकास उन इलाको में नही होने दे रहे है | आखिर क्यो ? इनका उद्देश्य तो यही था की सब का विकास हो और सभी, विकास की उस मुख्य धरा से जुड़े जिनमे शहर के बासिन्दे रह रहे है |आज ये कभी वहां बिजली के सब स्टेशन उडा देते है ,तो कभी मोबाइल के टावर ही नही लगने देते ,कभी ये स्कूल के भवन को ध्वस्त कर देते है, तो कभी स्कूल जा रहे किसी बच्चे को मार कर फेक देते है और उस मासूम बच्चे पर ये इल्जाम लगा देते है की वह पुलिश का मुखबीर है? आप ही सोचिये क्या ये सही है क्या ये वही नक्सली है जो नक्सल बाडी से पैदा हुवे और आज लगभग सारे भारत में फ़ैल चुके है | क्या ये इतने शक्ति साली हो चुके है की हमारी सरकारें इनका मुकाबला नही कर पा रही है ? या फ़िर करना नही चाहती है ?

मुझे तो ऐसा ही लगता है की हमारी सरकारें चाहे वो राज्य शासन हो या केन्द्र शासन दोनों में ही इक्षाशक्ति की कमी महसूस होती है |नही तो आप ही बताइए हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका एक माह के अंदर ही अपने देश से आतंकवाद का सफाया कर सकता है तो क्या हमारे पास श्रीलंका से कम संशाधन है या हमारी फोर्स कमजोर है जो पकिस्तान को कई मर्तबा धूल चटा चुकी है | आज हम टेक्नोलाजी में सबसे आगे है फ़िर भी इन नक्सलियों का सफाया करने में हम क्यो चूक रहे है ? मुझे तो इसमे सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनितिक लाभ उठाने की ललक ही दिखाई पड़ती है |राज्य शासन केन्द्र पर जिम्मेदारी डालता है और केन्द्र शासन राज्य पर, दोनों ही अपना राजनितिक लाभ उठाना चाहते है |

जरुरत सिर्फ़ एक अदद इक्षाशक्ति की है जिसकी कमी हमारी सरकारों में है | और अब हमारी सरकार और प्रशाशन को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए की वे जो भी योजनायें बनाते है या क्रियान्वित करते है उनका लाभ पंक्ति में खड़े आखरी व्यक्ति तक पहुंचे जिससे फ़िर कभी किसी नक्सल बाडी से किसी नक्सलवाद का जन्म न हो और ये जिम्मेदारी केवल शासन और प्रशाशन की ही नही आप की और मेरी भी है | जरुरत है अब हमें जागरूक होने की अपने देश के लिए मैं आप से ये नही कहता की सभी को सीमा पर जाकर लड़ना चाहिए पर हम थोड़े से जागरूक हो कर देश के लिए बहुत कुछ कर सकते है |

Friday, September 25, 2009

आज नवरात्र की अष्टमी का दिन है | पहले तो मेरे सभी दोस्तों को अष्टमी की हार्दिक बधाई | आज नवरात्र की अष्टमी आ गई और सिवाए शोर सराबे के कुछ भी ख़ास नही हुवा | आप सोच रहे होंगे की मैं ये क्या लिख रहा हूँ ??? पर मैं क्या करूं ये सच है | मुझे याद है की हमारे इस छोटे से शहर पेन्ड्रा में कभी ये नवरात्र इतनी धूम धाम से मनाई जाती थी की हमें आपने रिश्तेदारो और परचितो को बताने में गर्व महसूस होता था | भले ही उस समय २ या ३ जगह ही दुर्गोत्सव समिति के द्वारा दुर्गा पंडाल सजाये जाते थे | पर आज की स्थिति बिल्कुल उलट हों गई है | आज हर गली मोहल्लो में कुकुरमुत्ते की तरह दुर्गोत्सव समिति बन रही है, कोई ३ दिन के लिए तो कोई ९ दिन के लिए | अब आप ही बताये की ऐसे में कोई छोटे से शहर में कोई कितना बड़ा आयोजन कर सकता है ? जो बड़ी दुर्गोत्सव समितिया है वो तो इन्ही की वजह से घाटे में चल रही है | क्योकि जो चंदा इन्हे मिलता था वो अब इन सब में बट रहा है | ये न जाने क्यो हर व्यक्ति अपने आप को सामजिक या राजनितिक पहचान दिलाने के लिए शहर के धार्मिक कार्यो को अपना हथियार बना लेते है |यदि यही लोग मिल कर २ या ३ पंडालों पर ही कार्यक्रम कराये तो फ़िर से वही भव्य कार्यक्रम हो सकते है जो इन स्वार्थी लोगो की वजह से कही खो गए है | सभी को आपसी सामंजस्य बैठा कर इस दिसा में कार्य करना चाहिए | तभी सब लोग आनंद के साथ नवरात्र का सही मजा ले पायेंगे |मैं इस ब्लॉग के जरिये ही सही पर अपने नगर के वाशियों से ये अनुरोध करूँगा की कृपया इस विसये पर गंभीरता से सोचे और इस पर कोई सकारात्मक पहल करे यदि मेरे किसी सुझाव में आप कोई परिवर्तन चाहे तो कृपया जरूर लिखे आप के सुझाव का स्वागत है........

आरम्भ

आज मेरे ब्लॉग का पहला दिन है | पता नही क्यो मैं भी अपने आप को उस भीड़ में चलने से नही रोक पाया जिस पर आज सभी बड़ी हस्तिया चल रही है| पता नही यह सही है या नही , पर अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करने का ये मेरे ख्याल से बहोत ही अच्छा तरीका है | आप लोगो से जुड़ते है और अपनी सोच और विचार सब से बाटने का यह अच्छा तरीका है |मैं कोई इतनी बड़ी हस्ती तो हूँ नही की लोग मेरे बारे में जानने की कोई चेष्टा करे पर हाँ मैंने इस ब्लॉग का नाम चेतना इस लिए ही रखा है की देश -विदेश की घटनाओ पर और हमारे आस पास की गतिविधियों पर मैं यहाँ चर्चा करना चाहता हूँ |